कृष्ण जन्माष्टमी समारोह हिंदी में Krishna Janmashtami Celebration In Hindi

कृष्ण जन्माष्टमी कब मनाया जाता है , कैसे मनाया जाता है और इसके पीछे पूरी कहानी क्या है, भगवान श्री कृष्ण की स्तुति। [ Krishna Janmashtami Celebration In Hindi, Story , How to Celebrate ]

Krishna Janmashtami Celebration In Hindi – जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी या कृष्ण जन्माष्टमी ये एक वार्षिक हिन्दू त्योहार है। जो कि भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर मनाया जाता है। भगवान् श्रीकृष्ण को विष्णुजी के दशावतारों में से आठवें और चौबीस अवतारों में से बाईसवां अवतार मन जाता है। यह जन्माष्टमी या कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, कृष्ण पक्ष (अंधेरे पखवाड़े) के आठवें दिन (अष्टमी) को श्रावण या भाद्रपद में मनाया जाता है।

हिन्दुओं का यह एक महत्वपूर्ण त्योहार है, खासकर हिंदू धर्म की वैष्णव परंपरा में भागवत पुराण (जैसे रास लीला या कृष्ण लीला) के अनुसार कृष्ण के जीवन के नृत्य-नाटक की परम्परा, कृष्ण के जन्म के समय मध्यरात्रि में भक्ति गायन, उपवास (उपवास), रात्रि जागरण (रात्रि जागरण), और एक त्योहार (महोत्सव) अगले दिन जन्माष्टमी समारोह का एक हिस्सा हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार वैसे तो पूरे भारत और विदेशों में भी मनाया जाता है पर विशेष रूप से यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा भारत के अन्य सभी राज्यों में पाए जाने वाले प्रमुख वैष्णव और गैर-सांप्रदायिक समुदायों के साथ विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन में मनाया जाता है ।

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कृष्ण जन्माष्टमी 2023 में कब है या पूजा का शुभ मुहूर्त कब तक है?

प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस बार भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि आज दोपहर 03.38 से शुरू हो चुका है और इसका समापन 7 सितंबर को शाम में 04.14 बजे होगा इसलिए इस साल कई जगह आज यानी 6 सितंबर को कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। जबकि कुछ जगह 7 सितंबर को भी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। लोग जन्माष्टमी दिन श्री कृष्ण के लिए व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं। साथ ये भी मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को साल भर के व्रतों से भी अधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस व्रत के अलावा इस दिन कृष्ण चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए। कहते हैं कि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण की चालीसा पाठ करने से मुरली मनोहर की विशेष कृपा बनी रहती है।

कृष्ण जन्माष्टमी कैसे मनाया जाता है ?

जन्माष्टमी पर लोगों द्वारा उपवास रखने, कृष्ण प्रेम के भक्ति गीत गाकर और रात में जागरण करके मनाई जाती है। कृष्ण के मध्यरात्रि के जन्म के बाद, शिशु कृष्ण की मूर्तियों को धोया और पहनाया जाता है, फिर एक पालने में रखा जाता है। इसके बाद भक्त भोजन और मिठाई बांटकर अपना उपवास तोड़ते हैं। महिलाएं अपने घर के दरवाजे और रसोई के बाहर छोटे-छोटे पैरों के निशान बनाती हैं जो अपने घर की ओर चलते हुए, अपने घरों में कृष्ण के आने का प्रतीक माना जाता है। काफी जगह लोग अपने घरों में श्री कृष्ण की झांकी सजाते हैं। लोग अपनी कॉलोनी या ऑफिस या बाजार में मेला भी लगाते हैं।

हिंदू जन्माष्टमी को उपवास, गायन, एक साथ प्रार्थना करने, विशेष भोजन तैयार करने और प्रसाद साझा करने, रात्रि जागरण और कृष्ण या विष्णु मंदिरों में जाकर मनाते हैं। ज्यादातर मंदिर ‘भागवत पुराण’ और ‘भगवद गीता’ के पाठ का आयोजन करते हैं। कई समुदाय नृत्य-नाटक कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिन्हें रास लीला या कृष्ण लीला कहा जाता है।

Krishna Janmashtami Celebration In Hindi | कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी

कृष्ण, देवकी और वासुदेव के पुत्र थे और उनके जन्मदिन को हिंदुओं द्वारा जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है, विशेष रूप से वैष्णववाद परंपरा के रूप में कृष्ण को भगवान का सर्वोच्च व्यक्तित्व माना जाता है। जन्माष्टमी हिंदू परंपरा के अनुसार मथुरा में भाद्रपद महीने के आठवें दिन आधी रात को मनाई जाती है जब माना जाता है कि कृष्ण का जन्म हुआ था।

भगवान् कृष्णा के माता पिता वसुदेव और देवकी जी के विवाह के समय मामा कंस जब अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुँचाने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई थी जिसमें बताया गया था कि देवकी का आठवां पुत्र कंस को मारेगा। अर्थात् यह होना पहले से ही निश्चित था अतः कंस ने वसुदेव और देवकी को जेल में रख दिया पर इसके बावजूद कंस कृष्ण जी को नहीं मार पाया।

मथुरा की जेल में आधी रात के समय कृष्ण के जन्म के तुरंत बाद, उनके पिता वसुदेव कृष्ण को यमुना पार ले जाते हैं, ताकि कृष्ण को इन सबसे से दूर गोकुल में अपने मित्र नंद और यशोदा के घर पर उनका पुत्र बना कर छोड़ दें जिससे उनके जीवन पर संकट कम हो सके ।

भारत बहुत विशाल और विभिन्न संस्कृतियों वाला देश है। इसमें कोई भी त्यौहार सिर्फ किसी धर्म विशेष का ही नहीं रहता बल्कि अलग अलग प्रदेश में रहने वाले लोगों मिलकर हर जगह नए स्वरुप में प्रकट होता है। जैसे जन्माष्टमी पर कई जगह रासलीला खेली जाती है तो कई जगह दही हांडी की मटकी फोड़ी जाती है।

ये है भगवान श्री कृष्ण की स्तुति

श्री कृष्ण चन्द्र कृपालु भजमन, नन्द नन्दन सुन्दरम्।
अशरण शरण भव भय हरण, आनन्द घन राधा वरम्॥

सिर मोर मुकुट विचित्र मणिमय, मकर कुण्डल धारिणम्।
मुख चन्द्र द्विति नख चन्द्र द्विति, पुष्पित निकुंजविहरिणम।।

मुस्कान मुनि मन मोहिनी, चितवन चपल वपु नटवरम।
वन माल ललित कपोल मृदु, अधरन मधुर मुरली धरम।।

वृषभान नंदिनी वामदिशि, शोभित सुभग सिहासनम।
ललितादि सखी जिन सेवहि करि चवर छत्र उपासनम।।

(हरे कृष्ण, हरे कृष्ण)

श्री नारायण स्तुति :

नारायण नारायण जय गोविंद हरे ॥

नारायण नारायण जय गोपाल हरे ॥

करुणापारावारा वरुणालयगम्भीरा ॥

घननीरदसंकाशा कृतकलिकल्मषनाशा ॥

यमुनातीरविहारा धृतकौस्तुभमणिहारा ॥

पीताम्बरपरिधाना सुरकल्याणनिधाना ॥

मंजुलगुंजाभूषा मायामानुषवेषा ॥

राधाऽधरमधुरसिका रजनीकरकुलतिलका ॥

मुरलीगानविनोदा वेदस्तुतभूपादा ॥

बर्हिनिवर्हापीडा नटनाटकफणिक्रीडा ॥

वारिजभूषाभरणा राजिवरुक्मिणिरमणा ॥

जलरुहदलनिभनेत्रा जगदारम्भकसूत्रा ॥

पातकरजनीसंहर करुणालय मामुद्धर ॥

अधबकक्षयकंसारे केशव कृष्ण मुरारे ॥

हाटकनिभपीताम्बर अभयं कुरु मे मावर ॥

दशरथराजकुमारा दानवमदस्रंहारा ॥

गोवर्धनगिरिरमणा गोपीमानसहरणा ॥

शरयूतीरविहारासज्जनऋषिमन्दारा ॥

विश्वामित्रमखत्रा विविधपरासुचरित्रा ॥

ध्वजवज्रांकुशपादा धरणीसुतस्रहमोदा ॥

जनकसुताप्रतिपाला जय जय संसृतिलीला ॥

दशरथवाग्घृतिभारा दण्डकवनसंचारा ॥

मुष्टिकचाणूरसंहारा मुनिमानसविहारा ॥

वालिविनिग्रहशौर्या वरसुग्रीवहितार्या ॥

मां मुरलीकर धीवर पालय पालय श्रीधर ॥

जलनिधिबन्धनधीरा रावणकण्ठविदारा ॥

ताटीमददलनाढ्या नटगुणविविधधनाढ्या ॥

गौतमपत्नीपूजन करुणाघनावलोकन ॥

स्रम्भ्रमसीताहारा साकेतपुरविहारा ॥

अचलोद्घृतिञ्चत्कर भक्तानुग्रहतत्पर ॥

नैगमगानविनोदा रक्षःसुतप्रह्लादा ॥

भारतियतिवरशंकर नामामृतमखिलान्तर ॥

। इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं नारायणस्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ।

कृष्ण चालीसा | Krishna Chalisa

॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥
जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥

चौपाई

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर नाग नथैया।कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।आओ दीनन कष्ट निवारो॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी।होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
रंजित राजिव नयन विशाला।मोर मुकुट वैजयंती माला॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।कटि किंकणी काछन काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पुतनहि तारयो।अका बका कागासुर मारयो॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।मसूर धार वारि वर्षाई॥
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।गोवर्धन नखधारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो।कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा।सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहारयो।कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

असुर बकासुर आदिक मारयो।भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो।तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखि प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

भारत के पारथ रथ हांके।लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये।भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी।शालिग्राम बने बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करी तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला।बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया।डूबत भंवर बचावत नैया॥
सुन्दरदास आस उर धारी।दयादृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

॥ दोहा ॥

यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥

आरती श्री कृष्ण कन्हैया की | aarti shri krishna kanhaiya ki

आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की, मथुरा-कारागृह-अवतारी,
गोकुल जसुदा-गोद-विहारी, नंदलाल नटवर गिरिधारी,
वासुदेव हलधर-भैयाकी।।…..आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की।।

मोर-मुकुट पीताम्बर छाजै, कटि काछनि, कर मुरलि विराजै,
पूर्ण सरद ससि मुख लखि लाजै,
काम कोटि छबि जितवैयाकी।।…..आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की।।

गोपीजन-रस-रास-विलासी, कौरव-कालिय-कंस-बिनासी,
हिमकर-भानु-कृसानु-प्रकासी,
सर्वभूत-हिय-बसवैयाकी।।…..आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की।।

कहुं रन चढ़ै भागि कहुं जावै, कहुं नृप कर, कहुं गाय चरावै,
कहुं जागेस, बेद जस गावै,
जग नचाय ब्रज-नचवैयाकी।।…..आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की।।

अगुन-सगुन लीला-बपु-धारी, अनुपम गीता-ज्ञान-प्रचारी,
‘दामोदर’ सब बिधि बलिहारी,
बिप्र-धेनु-सुर-रखवैयाकी।।…..आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की।।

Janmashtami quotes in Hindi

राधे जी का प्रेम,
मुरली की मिठास,
माखन का स्वाद,
गोपियों का रास,
इन्ही से मिलके बनता है
जन्माष्टमी का दिन ख़ास।
Happy janamashtami!

मटकी तोड़े, माखन खाए,
लेकिन फिर भी सबके मन को भाए,
राधा के वो प्यारे मोहन,
महिमा उनकी दुनिया गाए।।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की ढेर सारी शुभकामनाएं !

एक हाँथ में बंसी उसके, एक हाथ चक्र संघार है।
मेरा कान्हा बंसी वाला, सबका पालनहार है ।।
जय श्री कृष्णा !

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