Chhochhak aur Bhaat parampara – ये रीति रिवाज मनाने का कारण, अवसर, मनाने के तरीके, इसको मनाने में नुकसान और मनाने का आज के समय में औचित्य।
पहले समय में जब पुरुष प्रधान समाज था तब स्त्रियों के विवाह के बाद भी हर एक अवसर ( चाहे अवसर अच्छा हो या बुरा ) पर उसके मायके से ससुराल वालों कुछ न कुछ उपहार देने की परंपरा थी। इसी का उदाहरण है ये छोछक और भात परंपरा और ये परंपरा किसी भी मामले से अच्छी नहीं थी और न ही इसका कोई तार्किक आधार था। इसी वजह से अब बड़े शहरों में इस प्रथा का वजूद ही अब ख़त्म हो गया है।
क्या होता है छोछक परंपरा
विधिपूर्वक विवाहित पुत्री के पुत्र होने पर उस बच्चे के लिए मामा और नाना की ओर से वस्त्र, आभूषण आदि भेंट किए जाते हैं। इस अवसर पर लड़की, दामाद तथा ससुराल के अन्य मान्य लोगों सास-ससुर आदि के लिए भी वस्त्र और भेंट के रूप में धन आदि दिया जाता है। समाज में इस परंपरा को ‘छोछक के नाम से जाना जाता है। यह परंपरा बच्चे के नामकरण वाले दिन पूरी की जाती है। अधिकांश वरों में संतान चाहे पुत्र हो या पुत्री माता के मायके वाले छोछक अवश्य देते हैं।
क्या होता है भात परंपरा
ठीक इसी प्रकार की एक परंपरा पुत्री के बेटे या बेटी के विवाह के समय मामा और नाना की ओर से निबाही जाती है। इस परंपरा को ‘भात’ देना कहते हैं। भात देने में कन्या के मामा-नाना कन्या के लिए तो वस्त्र आभूषण तथा नकद रकम देते ही हैं, ससुराल पक्ष के अन्य लोगों के लिए भी वस्त्र एवं भेंट आदि दी जाती है। इसी प्रकार भांजे की शादी में भी भात दिया जाता है।
इस वजह से शुरू की छोछक और भात परंपरा
भात के अतिरिक्त मामा आदि भांजी या भांजे की शादी में अनेक महत्त्वपूर्ण रस्में निभाते हैं। जैसे भांजी को कुंडल पहनाना एवं बारात आने से पहले की रात्रि में प्रातः चार बजे कन्या को स्नान कराना आदि। जहां तक छोछक एवं भात की परंपरा के कारण का प्रश्न है, तो शास्त्र के अनुसार इसके मूल में पिता की संपत्ति में से पुत्री को हिस्सा देने की भावना ही इसका प्रधान कारण है।
पुरुष प्रधान भारतीय समाज में एक लंबे समय तक पिता की संपत्ति पर पुत्र का अधिकार माना जाता रहा है। कन्या का विवाह कम उम्र में कर दिए जाने के कारण उसके जीवनयापन का भार पति पर होता है। अतः कन्या को पिता की संपत्ति से सीधे-सीधे हिस्सा न देकर उसके विवाह में धन लगाने का पिता और भाइयों का कर्त्तव्य निर्धारित किया गया है।
मनु ने व्यवस्था दी है कि
यथैवात्मा तथा पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा ।
अर्थात् जैसे आत्मा और पुत्र समान हैं, वैसे ही पुत्र और पुत्री समान हैं।
छोछक और भात परंपरा का औचित्य
छोछक और भात देने की परंपरा भले ही लड़की को उसके पिता की संपत्ति में हिस्सा देने के लिहाज से शुरू की गयी हो पर आज के परिवेश में उसका कोई औचित्य नजर नहीं आता क्योंकि अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी पिता की संपत्ति में पुत्री का हिस्सा भी माना है। अब ऐसे में इस प्रथा की क्या आवश्यकता। दूसरी बात यदि हम किसी लड़की को उसका हिस्सा देना ही चाहते हैं तो हमे उसको उसके पसंद के माध्यम में देना चाहिए जैसे उसे रूपये पैसे चाहिए या जमीन में हिस्सा या कुछ और तरह से। साथ ही इसमें ये भी प्रावधान नहीं है कि यदि लड़की के पिता की कोई संपत्ति नहीं है तो छोछक और भात देने की परंपरा न निभाई जाय। ऐसे में यदि पिता और पुत्र की आर्थिक स्थिति ठीक न हो तो ये छोछक और भात देने की परंपरा उनपर अतिरिक्त आर्थिक बोझ लाद देगी।